बुधवार, 25 अप्रैल 2018

"जमाल "

मौजूदगी से तेरी इन बेकार नज़ारों को काम हो जाए,

देख ले तक के इक दफ़ा खुद ग़ज़ल ये शाम हो जाए ।

जिंदगी  के    पेचीदा  सफ़र  पे  चलें   उससे पहले,

कुछ घड़ी  मखमली इन घासों पर आराम हो जाए ।

छुकर-सहलाकर देख लो इन सभी गुलनारों को,

बेदिल कर रहा  इन्हें जो   रूखापन गुमनाम हो जाए।

उस   फ़लक   को   भी दे हिफाज़त   आँखों से इतनी,

जमाल* से तेरे काली घटाओं का काम तमाम हो जाए।

पाक हो जाएं  हवाएं भी  तेरे इत्र से टकराके,

बेजा़न  महक  के  मंसूबे  नाकाम  हो  जाएँ।

राहुल कुमार "सक्षम"

जमाल - सौंदर्य

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