खुशी दबी पड़ी पालों* में है,
फरियाद फँसी नालों* में है।
जिंदगी वहम से कम नहीं,
हर कदम सवालों में है ।
दौर है ये ख़यानत* भरा
अदब महज मिसालों में है।
रोज़ नई कीमत तय है यहाँ
आदमियत फँसी जंजालों में है।
यही तसल्ली अंधेरे में कायम है,
कुछ आग बची उजालों में है।
राहुल कुमार "सक्षम"
पाला - तुषार, नाला - रोना चिल्लाना,
ख़यानत - भ्रष्टाचार