अश़्क सुखा लूँ ख़ुद इना हो जाऊँ,
या बहूँ आब सा फ़ना हो जाऊँ।
नज़र आऊँ बादलों की सिफ़्त बस मैं,
तिरे चारों तरफ़ इतना घना हो जाऊँ।
मचलती जहाँ तू किसी पत्ते की तरह,
उस दरख़्त का मैं तना हो जाऊँ।
लहजे की तेरे इतनी तासीर तो रहे,
कि जिससे मिलूँ आश़्ना हो जाऊँ।
क़त्ल कर गुज़रना तमाम ख्बावों से भी,
मुख़्तसर सा भी गर तेरे बिना हो जाऊँ।
हवा ले पहुँचे मुझे मेरे तसव्वुर से पहले,
सोचता हूँ इतना घुलूँ कि झीना हो जाऊँ।
राहुल कु "सक्षम"
Nice
जवाब देंहटाएंAnd
So wonderful
शुक्रिया मेरे दोस्त
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So wonderful