मंगलवार, 13 मार्च 2018

"भूल "

मुश़्किल दौर में यही चूकें हर बार हो  गईं,

दिक्कतें जो राह से न हटाईं कतार हो गईं ।

बेवक्त  ही  देर   से पड़ी  छलाँग  हाथों की,

लहर टकराई सब सीपीयांँ उस पार हो गईं ।

हम से ही वाकिफ़ हुए  न जो ऐब  हमारे,

शह्र के लोगों की  आंँखें अख़बार हो गईं।

नरमी से थपकती थीं जो कभी साथ मिलकर,

वो  सभी  उंँगलीय  अब  धारदार  हो गईं ।

    राहुल कु. "सक्षम "

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"वहम "

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