मुश़्किल दौर में यही चूकें हर बार हो गईं,
दिक्कतें जो राह से न हटाईं कतार हो गईं ।
बेवक्त ही देर से पड़ी छलाँग हाथों की,
लहर टकराई सब सीपीयांँ उस पार हो गईं ।
हम से ही वाकिफ़ हुए न जो ऐब हमारे,
शह्र के लोगों की आंँखें अख़बार हो गईं।
नरमी से थपकती थीं जो कभी साथ मिलकर,
वो सभी उंँगलीय अब धारदार हो गईं ।
राहुल कु. "सक्षम "
Nice
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
जवाब देंहटाएंNice ghazal
जवाब देंहटाएंThanku...
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